Wednesday 29 April 2015

प्रकृति चन्दन


दरअसल, सत्य तो यह है की ये पंक्तियाँ अपने बेटे को स्कूल की एक प्रतियोगिता में, स्वयं कि लिखी कविता बुलवाने की जिद में लिखी थीं| किन्तु जब शब्दों ने कागज़ पर उतरकर यह रूप लिया तब अहसास हुआ कि चाहे कोई भी युग, समय, स्तर अथवा विचारधारा रही हो, माता पिता सदा से ही अपने बच्चों के लिए इन विशिष्ट गुणों से परिपूर्ण होने कि कामना करते आये हैं| आज माँ के रूप में मेरी कामना भी कतई  अलग नहीं थी|
अपने घर परिवार के बच्चों को समर्पित कर रही हूँ अपनी यह कामना| और हाँ, अगर इन पंक्तियों में आप भी अपने मन कि बात महसूस करें, तो समर्पित कर सकते हैं, अपनी आँख के तारों को, यह मेरी पंक्ति...




 

प्रकृति चन्दन



सूरज की गर्मी में तपकर,
चाँद सा शीतल बन जाऊँ..

ह्रदय अम्बर सा विशाल बने,
और मन में दया की बरखायें..

सागर की गहराई पाऊँ,
अटल पर्वत बन दिखलाऊं..

धरा का धीर मुझे मिले,
और चरित्र नभ सा धवल बने..

ग्रहों की मुझे गति दे दो,
और ऋतुओं का सा प्राण दो..

फूलों की सुगंध बन जाऊँ,
हर दिल हर मन महकाऊँ..

ईश सुनो मेरा यह वंदन,
हर गुण सृष्टि का कर दो अर्पण..

सरल, सुदर्शन, उज्जवल जीवन,
अंग अंग को दे दो प्रकृति चन्दन||




Thanks for reading.
Copyright - Vindhya Sharma




No comments:

Post a Comment