Saturday 31 January 2015

श्रद्धांजलि



तीन नन्हे नन्हे बच्चों के साथ, गर्भ में अपने अजन्मे शिशु को लिए, इक्कीसवें बरस में कदम रखती वो यौवना, जो विधवा हो गई थी, वो "अम्माजी" थीं मेरी| पूर्ण अशिक्षित अम्माजी के ऊपर असहनीय, अतुलनीय विपदाओं का वज्र ऐसा पड़ा की सारे जहां के कष्ट रो पड़े | वह महिला जो कभी घूँघट के बाहर न झांकी थी, चौके के बाहर न निकली थी और न ही जिसके पास कोई आर्थिक सम्बल था, उसने जीवन की हर गहरी खाई को पाटते हुए, अपने बच्चों को बेडा पार पहुँचाया | पर यह संघर्ष इतना दर्द दे गया की वो मुस्कुराने में डरने लगीं और मुझे लगा की उनकी संवेदनाएं लुप्त हो गई| अपनी इस गलती का अहसास कर जब तक मेरी सुप्त भावनाएं जागीं ...... देर हो चुकी थी....

श्रद्धांजलि 

संघर्षों का जीवन तुम्हारा, संघर्ष भरा ही अंत रहा...
कष्टों को तुमने जीया, न इक पल भी विश्राम किया...

दुःख गिरि बन जब हुआ खड़ा, देख साहस डिग पड़ा...
विधाता का निर्मम खेल रहा, उसको तुमने खूब सहा...

अनेक व्यथा संताप लिए, संतति के लिए सब जाप किये...
रख पीड़ायें अपने लिए, उन्नत जीवन हमको दिए...

आज अम्माजी तुम चली गईं, यादें सब पीछे छोड़ गईं...
तुम गुणों की खान थी, कभी हमने नहीं पहचान की...

मन बहुत पछता रहा, 
अब समझ सब आ रहा...
कि...
क्यूँ तुमने जीवन जीया,
क्यूँ कहा सबकुछ खरा खरा...

सुख को क्यूँ  अस्वीकार किया, 
क्यूँ मन ही में सबको प्यार किया... 

क्यूँ ताउम्र खाली हाथ रहीं 
और क्यूँ नीम का वृक्ष बनी...

अब नयन अश्रू से पूर्ण हैं
 पर हम तुमसे बड़े दूर हैं...

बड़ा कटु अहसास है, 
कभी न मिलने कि आस है...

शीश नवा तुम्हे नमन करते,
श्रद्धा कि अंजुली अर्पण करते...

करबद्ध ईश का आहवान करें,
शीघ्र मोक्ष प्रदान करें...

अन्यथा...
नया तन और मन मिले, 
जीवन की हर उमंग मिले...

नव तुमको जल्द जनम मिले, 
सब खुशियों के संग मिले
सब खुशियों के संग मिले


Copyright-Vindhya Sharma

Thursday 29 January 2015

Chote Chote Sukh

"व्यवस्था विवाह" (Arrange marriage) की व्यवस्था उस युवती के लिए बड़ी कष्टदायक हो जाती होगी, शायद, जो की एक रूढ़िवादी मध्यमवर्गीय परिवार की परवरिश तो है पर कुछ चित्र उकेर कर उनमे चुपचाप रंग भर लेती है| अपनी इस चित्रकारी को, किसी को भी दिखाने का साहस नहीं पाया होता उसने |

आज से सही डेढ़ दशक पूर्व, मैंने भी अपने उस युवा रंगीन सपने को झपकते हुआ सा महसूस किया था...खुद को सहमा हुआ सा महसूस किया था|

आशंकित मेरे इस मन ने अपना यह डर मेरे दिल को बताया था, पंद्रह वर्ष पूर्व, कुछ इस तरह.....


छोटे छोटे सुख



छोटे छोटे सुख ढूंढे थे, 
मैने कई अभावों में....

बड़े जतन से और यतन से, 
थे फूल बिछाये राहों में ....

कुछ सपने बुने और खुशियां चुनी, 
फिर लौ जलाई चरागों में...

इक नक्श उकेरा, उसका चेहरा, 
सजा लिया था निगाहों में....

अब खोते सुख, क्यूूँ उड़ते फूल,
बुझती लौ, वो चेहरा…. 
डरा रहा है ख्वावों में....

ध्यान धरूँ और याद करूँ मै, 
हुई गलती कहाँ हिसाबों में ....

अनबुझ पहेली सुलझाती खुद, 
उलझ गई सवालों में... 


सोच रही, यही खोज रही मैं ….
क्यूूँ आज घुटता दम है मेरा,
वक्त की कसती बाँहों  में....

छोटे छोटे सुख ढूंढे थे मैने कई अभावों में!!


Copyright-Vindhya Sharma