Friday 15 May 2020

निराला वक्त

Covid 19 की इस वैश्विक महामारी को फैलने से बचाने के क्रम में lockdown-3  का चरण खत्म होने को है। डरे सहमे इस दौर की अनुभूती भी कितनी अद्‌भुत है न! डर के साथ थोडी खुशी-संतुष्टि का मेल अनोखा और विरला ही है। वक्त तो एक खैर एकसा रहता नहीं कभी पर क्या इस वक्त के बीतने के बाद कुछ रीता सा नहीं हो जाएगा जीवन मे ? कुछ अनमोल से पल याद तो बहुत आएँगे जरूर! 

बताइए तो कितने लोग सहमत हैं मेरी इस अभिव्यक्ति से?
 यह रही आज की मेरी पंक्ति.....



                             निराला वक्त


यह वक्त तो गुज़र जाएगा, पर याद सदा ही आएगा।
इक रात में सब बदल गया, जो था कल वो कल गया।
जहाँ सारा यूँ उलट गया, आकर घर में सिमट गया।
पल जो दूर से रिझाते थे, स्वप्न में कितना आते थे।
सारे अब आकार हुए, पूर्ण हुए, साकार हुए।

कब ताश की बाजी लगती थी, कहाँ बरसों शतरंज बिछती थी ....
कैरम कब का किनारे था, लूडो भी वक्त से हारे था।
सारे अब किलकार हुए, हर्षित और गुलजार हुए।
रसोई खटपट तो करती थी, पर काम झटपट करती थी
दाल भात आम था, रोटी सिकना, डब्बा बनना यही रोज का काम था।
अब रोज ही व्यजंन बनते हैं, नित तस्वीरों से बंटते हैं।
देखो चौका भी पंसार हुआ, महकते प्रयोगों से भरमार हुआ I

फैशन देखो निढ़ाल हुआ, मेकअप तो बीता काल हुआ।
असल से जब मुलाकात हुई, तो नकल की गई औकात हुई।
जो आडम्बर का परिहार हुआ, तो अल्प का मोल स्वीकार हुआ।
वो इक काम जो अछूता था, कब का छूटा रीता था... बिना दस्तक दिए आ- चला
उद्धिग्न मन को लुभा चला।
देखो बदलावों का हार बना, यह शुरू से शुरू संसार बना।

गर इन पलों को सहेजा जाएगा, तो मन सदा हर्षाएगा।
क्योंकि वक्त तो यह गुज़र जाएगा पर याद सदा ही आएगा!!