Thursday 12 February 2015

जरूरी

अपनी अपेक्षाओं, प्राथमिकताओं की अलग ही स्वप्निल सी दुनिया बनाकर, उसमे विचरण करती आज की युवा पीढ़ी में राजनीतीक दर्शन के प्रति अचानक ही उत्सुकता सी पैदा हुई है| निसंदेह राजनीति के पटल पर अकस्मात् ही उभरे दो व्यक्तियों की महत्वपूर्ण भूमिका है इसमें|
प्रसन्नता की बात है की दोनों की ही दृष्टि व् दृष्टिकोण अपने अपने तरीके से लुभाता है लोगों को|  यही तो वजह है जिसके कारण दोनों को जनता का समर्थन हाथ खोलकर और विश्वास आँख बंद करके मिला, और इतना मिला की संख्याएँ ठिठक गईं| समान मंजिल को तकती, दो धारायें बह निकली हैं, भले ही राहें भिन्न हैं, पर सब जानते हैं कि समागम का स्थान तो एक ही है|
तीक्ष्ण निगाहों में आशाएँ जागी हैं अनेक...
आज संपूर्ण राजनीती में छाए हुए इन दोनों नव विश्वास के सूत्रधारों को, जिन्हे परिचय की आवश्यकता नहीं है, चेताते हुए, समर्पित कर रही हुँ अपनी यह पंक्ति ...


जरूरी 



स्फुटित स्मृत भोर में, चिंतन का है तम जरुरी,
तपते विशद उदभास का, अब होना है मद्धम जरूरी...

खिलती कलियों के उपवन में, जैसे ढलता सा यौवन जरूरी,
वैसे ठंडी सौंधी बयार चली तो, है आंधी भी प्रचंड जरूरी...

'स्व' प्रदर्शन प्रचार में, कुछ नीति हों प्रछन्न जरूरी,
विजय मद अट्हास का, कर गंभीर सा मंथन जरूरी...

जो दी पताका लहराती तो, रखे पैनी वो चितवन जरूरी,
उद्दंड, उद्वेग उदगार में, अब कर विनय उत्पन्न जरूरी...

तन जरूरी, मन जरूरी, जीवन का हर रंग जरूरी,
नव उज्जवल आगाज़ से, हर वचन हो संपन्न जरूरी |||


Thank you for reading.
To read my Words, in rythem, on politics pls go. Mahila surksha, Kejri fir se
Copyright-Vindhya Sharma





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