Thursday 5 February 2015

महिला सुरक्षा (केजरीवाल जी को समर्पित)




निर्भयाओं की फेहरिस्त नहीं खोल रही यहाँ, किन्तु इस सत्य को विमर्श हेतु प्रस्तुत जरूर करना चाह रही हुँ कि बढ़ते हुए बलात्कार जिस तेजी से सांख्यिकी को लजा रहे हैं, क्या वह तेजी महिलाओं के आगे बढ़ते क़दमों को हड़बड़ा नहीं रही? .....अवश्य रही है |
यौन शोषण के आंकड़ों को अपनी गली, अपने पड़ोस से निकलता देखती हर महिला, इस कृत्य और इसके बाद होने वाले  राजनीतिक- सामाजिक तमाशे से सहम कर रह जाती है|
चौंक चौंक कर कदम बढ़ाती वह अपने मन कि यह बात कह रही है,  सही व्यक्ति कि आस में उसे, जो जान पड़ता है कि जरूर कुछ कर जायेगा, मेरी इस पंक्ति के माध्यम से....
इस तरह....


मेरा विश्वास





कैसे उन्नत हो घर वो, जहाँ नारी शोषित होती है...
आज निर्भया हर नारी में डरी सहमी सी बैठी है...
बढ़ते क़दमों का विश्वास, चौकन्न सदा ही रहता है...
क्या कोई नहीं साथ खड़ा? प्रश्न मायूस हो कहता है...

आज तुझसे है उम्मीद जगी..
कुछ हल दिखा...
प्रबल दिखा...

है कुछ शक्ति तेरी इच्छा में, ये आभास तुझसे आता है...
इक इस आभास को विश्वास दिला...
न धता बता...
ला पता बता...

सहानुभूति की भूख नहीं, हर्जाना न आस हमारी है...
हर बलात्कारी नपुंसक हो जाये,
ये भय उपजा...
ये खौफ जगा...

बातें बहुत सी सुनी हमने, धरने भी खूब देख लिए...
पर घर की इक इक नारी को,
कुछ न सम्बल मिला...
 न बल मिला..

है तुझमे बूता,
क्षमता दिखती तुझमे...
कुछ साहस सा तो धड़कता है...

ले बटोर तू सारा माद्दा,
मुझे सम्मान दिला ...
ला मान दिला...

न कोई निर्भया फिर बन पाये,
बन निर्भया न कोई मर जाये....
ले जिम्मा अपने कन्धों पर...
न वही रसम निभा...
ले कसम खा....

अवसर तुझको देती हूँ,
बातें न बनाना,करके दिखाना...
जो मौका मिला...
तो कर दिखा,
अब कर दिखा||

Thanks for reading my words.

Copyright-Vindhya Sharma
To read my Words, in rythem, on politics pls go to- Jaroori, Kejriwal fir se
To read my words, in rythem, on a worried indian father of a young girl pls go to- "3 lakeere"


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