Wednesday 21 September 2016

नाज़ है तुझ पर ...

अपनी अति प्रिय के एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में चयन की खबर से आज सुबह की आँख खुली| उसकी ख़ुशी शब्दों में बंध ही नहीं पा रही थी| याद हो आया मुझे की एक छोटे से इलाके से निकली इस बच्ची ने विकसित दुनिया का हिस्सा बनने की कभी कल्पना भी न की थी| उसकी आँखों में झिलमिलाते सपने को पहचानकर, थोड़ा उसका हाथ थामकर, इन सपनो को हासिल करने की राह दिखाई तो उसने पूरी मजबूती और दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ इस राह पर अपने सफर की शुरुआत की| न तो लोगों के कटाक्षों से डगमगाई और न ही राह के अन्य काँटों की चुभन की परवाह की| आज उसके मंजिल नज़र आने की खबर से खुश हूँ बहुत| संतुष्ट और गौरवान्वित हूँ उसके परिश्रम से, आशान्वित हूँ उसकी अनेक बुलंदियों के लिए और साथ ही उसके सफर में थोड़ी देर का साथी बनने का सुख भी अनुभव कर रही हूँ|
रिश्ते में ननद पर ह्रदय में अपने ही अंश का सा अहसास देने वाली इस बच्ची को शुभाशीष व शुभकामनाओं सहित समर्पित कर रही हूँ मेरी यह पंक्ति...







चाँद-सितारों की चमचम से पथ रोशन है,
आगाज़ कर...तू नव आगाज़ कर..

ले भर बाँहों में अनंत, हर हवा का अंदाज़ कर,
अब नित् नव आभास कर...

फैला पंख ले निर्भयता से, बेहद ऊंचा परवाज़ भर,
नित् नव शिखर पर वास कर...

अथक कारज के मकरंद को, अब चाव से तू स्वाद कर...
इस नव सुधा का स्वाद विलग...

मौनी निंदक भये तो, मस्तक प्रियजन के खड़े,
आज तुझपर नाज़ सबको, इस नाज़ के अहसास पर...
राज कर तू आज कर...

उछाह मन की सुखद बड़ी है, इस उछाह से हो ले तर,
निशंक हो न लाज़ कर,
ह्रदय की आवाज़ पर....
ले कर नव आगाज़ कर!!!!