एक मासूम, जिसने किताबों में कश्मीर को भारत का स्वर्ग पढ़ा, उसका बेहद खूबसूरत चित्रण व् तस्वीरें देखी और न जाने कितनी ही बार घर में, उस सपनो से सुन्दर शहर को घूमने और जाकर देखने की जिद की| फिर उसने जब उस सपनो के शहर के लहूलुहान होने, हिंसा से त्रस्त होने, रोज ही अनेक हत्याओं के अर्थात भीषण आतंकवाद का निर्ममता पूर्वक शिकार होने के बारे सुना, पढ़ा और टीवी पर देखा तो वो डर के मारे कांप गई|
२५-३० वर्ष पूर्व के कश्मीर के दयनीय व् मन को व्यथित कर देने वाले हालात किसी से छुपे नहीं हैं| उन हालातों का, मेरे १४-१५ बरस के मासूम मन पर जो प्रभाव पड़ा वो कागज़ पर पंक्तियों के रूप में उतर आया... इन दिनों जब कश्मीर में पाकिस्तान का झंडा लहराने, पाकिस्तान समर्थन में नारे लगाने, आतंकवाद व् हिंसा को उकसाने की ख़बरें पढ़ी तो, उन पंक्तियों को आपसे बाँटने का मन हो आया, जो हैं तो बचपन की कलम से लिखी, पर सच
भी तो हैं...
फ़िरदौस
कह फ़िरदौस गए जाने वाले जिसे,
नरक भी लगे अब कहना कठिन उसे..
जगह सुकून की तन्हाई ने ली,
बहार की जगह ललाई ने ली ...
शांति जहाँ अशांत हो गई है,
हंसी वहां खुद रो गई है...
डरती मौत है जहाँ जिंदगी से,
उठे है आस्था वहां बंदगी से...
हा !! कश्मीर वो सुन्दर कहाँ खो गया,
धैर्य भी अब अधीर हो गया ...
बुरी लगी ऐसी है नज़र उसे,
जो नरक भी लगे कहना कठिन इसे,
फ़िरदौस जाने वाले कह गए जिसे!!!
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Copyright@Vindhya Sharma
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