8 मार्च, अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के निकट आते ही विभिन्न समारोहों का आयोजन व उनमे महिलाओं का महिमामंडन, वर्षों से चली आ रही एक सुनियोजित सी परंपरा है| उन्नति पथ पर अपनी राह संवारते आगे बढ़ती महिला इन आयोजनों को, मुड़कर देखती जरूर है किन्तु मुस्कुरा कर आगे बढ़ जाती है| उसकी यह मुस्कराहट इस महिमामंडन के लिए होती है| हर क्षेत्र के विभिन्न श्रेष्ठ पदों को संभाल-संवार रही महिलायें, आज भी गर्व से तो कभी गंभीरता से, अपने स्त्री जन्म के विषय में सोचती जरूर हैं| अपने एक ही जीवन में, अनेक सीमाओं के अंतर्गत, कितनी ही भूमिकाओं का निर्वहन कुशलता व प्रसन्नतापूर्वक कर रही है, आज भी महिला|
२० वर्ष पूर्व की याद मन को ताजा सा स्पर्श देती है, जब कॉलेजों में, सत्ताइसवें अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के उपलक्ष्य में, "नारी होने का अहसास" विषय पर विभिन्न संगोष्ठियों व कार्यशालाओं का आयोजन किया जा रहा था व छात्र छात्राओं से भी विचार आमंत्रित किये जा रहे थे| अपनी मित्र के साथ, इस दिए गए विषय के दर्शन को सहानुभूति, नाराजगी, प्रश्नचिन्ह तो कभी गर्व के भावों के साथ विमर्श करते हुए कुछ पंक्तियाँ स्वतः ही कागज़ पर उतर आईं| इन पंक्तियों से जुडी एक सुखद स्मृति यह भी है कि जब मैने इन्हे समारोह में भिजवाया तो कई जानी मानी कवियत्रियों की कविताओं से सुसज्जित एक पुस्तक में इन्हे , प्रकाशन हेतु स्थान दिया गया|
'एक जीवन में अनेक जन्मों का संगम", यह सत्य मेरी लिखी इन बरसों पुरानी पंक्तियों में आज भी, उतनी ही सच्चाई से धड़क रहा है न ..
२० वर्ष पूर्व की याद मन को ताजा सा स्पर्श देती है, जब कॉलेजों में, सत्ताइसवें अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के उपलक्ष्य में, "नारी होने का अहसास" विषय पर विभिन्न संगोष्ठियों व कार्यशालाओं का आयोजन किया जा रहा था व छात्र छात्राओं से भी विचार आमंत्रित किये जा रहे थे| अपनी मित्र के साथ, इस दिए गए विषय के दर्शन को सहानुभूति, नाराजगी, प्रश्नचिन्ह तो कभी गर्व के भावों के साथ विमर्श करते हुए कुछ पंक्तियाँ स्वतः ही कागज़ पर उतर आईं| इन पंक्तियों से जुडी एक सुखद स्मृति यह भी है कि जब मैने इन्हे समारोह में भिजवाया तो कई जानी मानी कवियत्रियों की कविताओं से सुसज्जित एक पुस्तक में इन्हे , प्रकाशन हेतु स्थान दिया गया|
'एक जीवन में अनेक जन्मों का संगम", यह सत्य मेरी लिखी इन बरसों पुरानी पंक्तियों में आज भी, उतनी ही सच्चाई से धड़क रहा है न ..
जन्म लेना ही है साहस
बालिका एक,
बेचैनी को मन ही में सहती है...
शहनाइयों के शोर में,
खुद से यह कहती है...
'है मौसम परेशां सा,
लगे अब जीवन मेहमां सा,
परसों ही दुनिया में आये हैं,
कल ही तो थोड़ा मुस्काये हैं...
और आज....
एक कहानी खत्म..
कल दूसरा मेरा जनम है,
निभानी विवाह की रसम है||'
और दुनिया,
वैसी ही रहती है...
पर,
बालिका वही,
शादी बाद, बन औरत यह कहती है...
'है आभास मुझे खुद के बदलने का..
फूलों के महकने और चिड़ियों के चहकने का...
सत्य ही किसी का ये कथन है...
ख़ुशी और डर का ये संगम है...
कल तीसरा मेरा जनम है
देना किसी को नया जीवन है||'
पूछते हमसे जो हैं नारी होने का एहसास...
कहो उन्हें, यह रूप ले जन्मना ही है साहस
कई जन्मों- उपजन्मों का नाम स्त्री है,
दुर्गा तो कभी ये कहलाई सती है...
एक जन्म माँ से लिया,
जन्म दूजा, विवाह ने दिया...
बन माँ स्वयं, पाया जन्म तीजा ....
एक जीवन में कई जन्मों के लक्षण
सत्य है, होना स्त्री है विलक्षण !!
होना स्त्री है विलक्षण !!
Thanks for reading my words.
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