"व्यवस्था विवाह" (Arrange marriage) की व्यवस्था उस युवती के लिए बड़ी कष्टदायक हो जाती होगी, शायद, जो की एक रूढ़िवादी मध्यमवर्गीय परिवार की परवरिश तो है पर कुछ चित्र उकेर कर उनमे चुपचाप रंग भर लेती है| अपनी इस चित्रकारी को, किसी को भी दिखाने का साहस नहीं पाया होता उसने |
आज से सही डेढ़ दशक पूर्व, मैंने भी अपने उस युवा रंगीन सपने को झपकते हुआ सा महसूस किया था...खुद को सहमा हुआ सा महसूस किया था|
आशंकित मेरे इस मन ने अपना यह डर मेरे दिल को बताया था, पंद्रह वर्ष पूर्व, कुछ इस तरह.....
आज से सही डेढ़ दशक पूर्व, मैंने भी अपने उस युवा रंगीन सपने को झपकते हुआ सा महसूस किया था...खुद को सहमा हुआ सा महसूस किया था|
आशंकित मेरे इस मन ने अपना यह डर मेरे दिल को बताया था, पंद्रह वर्ष पूर्व, कुछ इस तरह.....
छोटे छोटे सुख
छोटे छोटे सुख ढूंढे थे,
मैने कई अभावों में....
बड़े जतन से और यतन से,
थे फूल बिछाये राहों में ....
कुछ सपने बुने और खुशियां चुनी,
फिर लौ जलाई चरागों में...
इक नक्श उकेरा, उसका चेहरा,
सजा लिया था निगाहों में....
अब खोते सुख, क्यूूँ उड़ते फूल,
बुझती लौ, वो चेहरा….
डरा रहा है ख्वावों में....
ध्यान धरूँ और याद करूँ मै,
हुई गलती कहाँ हिसाबों में ....
अनबुझ पहेली सुलझाती खुद,
उलझ गई सवालों में...
सोच रही, यही खोज रही मैं ….
क्यूूँ आज घुटता दम है मेरा,
वक्त की कसती बाँहों में....
छोटे छोटे सुख ढूंढे थे मैने कई अभावों में!!
Copyright-Vindhya Sharma
मैने कई अभावों में....
बड़े जतन से और यतन से,
थे फूल बिछाये राहों में ....
कुछ सपने बुने और खुशियां चुनी,
फिर लौ जलाई चरागों में...
इक नक्श उकेरा, उसका चेहरा,
सजा लिया था निगाहों में....
अब खोते सुख, क्यूूँ उड़ते फूल,
बुझती लौ, वो चेहरा….
डरा रहा है ख्वावों में....
ध्यान धरूँ और याद करूँ मै,
हुई गलती कहाँ हिसाबों में ....
अनबुझ पहेली सुलझाती खुद,
उलझ गई सवालों में...
सोच रही, यही खोज रही मैं ….
क्यूूँ आज घुटता दम है मेरा,
वक्त की कसती बाँहों में....
छोटे छोटे सुख ढूंढे थे मैने कई अभावों में!!
Copyright-Vindhya Sharma
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