Thursday, 10 August 2017


कारे बदरा



घनघोर काली घटायें और रिमझिम बरसते मेघ किसी के भी मन को रोमांचित कर देते हैं...खासकर तब जब की लम्बी प्रतीक्षा के बाद इन्हे देखने का अवसर मिलता हो| कल से ऐसे ही सुहाने मौसम से  मन प्रफुल्लित और तरोताज़ा है...और हर बरसती फुहार के साथ साथ, कुछ समय पहले लिखी हुई पंक्तियाँ भी स्वतः ही मुख से गीत बनकर निकल रही हैं| अपनी यह उमंग आपसे साझा कर रही हूँ..माध्यम है यह मेरी यह पंक्ति...










कारे कारे, प्यारे बदरा, क्यों देर से आये रे...
रिमझिम करती बूंदों को थे क्यों हमसे छिपाये रे...

तकती राह कितनी अँखियाँ थीं,
चिंतित मन में बतियाँ थीं,
खग-विहग, ताल-तलैया, 
सबकी बेचैन रतियाँ थीं||

जो आये अब तो ऐसे आये, मयूर मन ये बन जाये रे,
तेरी ठंडी ठंडी पवन के झोंके, मेरा रोम-रोम हर्षाये रे ||

कारे कारे, प्यारे बदरा, क्यों देर से आये रे...
रिमझिम करती बूंदों को थे क्यों हमसे छिपाये रे..

जो आये अब तो जाना मत तुम
दौलत अपनी कर दो न अर्पण,
टिको, रहो, ले लो तो कुछ दम,
तृप्त कर दो न सृष्टि का हर कण ||

तेरी नन्ही नन्ही फुहार की कलियाँ,
सौंधी सुगंध उड़ाए रे...
मन का पंछी चहकता उड़ता,
जब सब गुलशन बन जाये रे...
कारे कारे प्यारे बदरा, क्यों देर से आये रे||


Thursday, 30 March 2017

मुस्कान तेरी


एक दूसरे से बंधे-गुंथे हुए हम भाई-बहन बचपन की दहलीज़ पार करके कब, कितना आगे निकल आये पता ही नहीं चला| एहसास इस बात का तब हुआ जब अपने बच्चों को भी उसी दौर को दोहराते देखा| एक दूसरे के बच्चों के साथ नए बनते रिश्ते और उन रिश्तों में नई अनुभूतियाँ स्पंदित होते दिखीं| जनम लेने से पहले से ही उस आने वाले मेहमान के रूप में नया रिश्ता, नया एहसास लाता है | जनम के साथ ही उसके आने का जश्न , नामकरण पर चर्चा, नैन नक्शों से ख़ुद के मिलान की  लुभावनी ज़िद, एक अनूठा, प्यारा सा  जुड़ाव पैदा कर देती है | यही तो रिश्तों की मिठास होती है | 'बुआ' और 'मासी' के ये रिश्ते कितने अद्भुत होते हैं न| आज मन किया कि क्यों न इन कोमल नन्हे रिश्तों के अनुभव को पंक्तिबद्ध करूँ|

अपने छोटे भाई के नन्हे-मुन्ने का हर वक्त मुस्कुराता चेहरा आँखों के सामने आ रहा है| परेशानी में भी तुरंत मुस्कुरा देना उसकी ऐसी विशेषता है की घर के बड़ों को कभी किसी भी गलती पर उसपर नाराज़ नहीं होने देती| यही खासियत उसका आकर्षण है|
उसी मासूम के नाम आज स्नेहाशीष से भरी यह मेरी पंक्ति.....

मुस्कान तेरी







यह मुस्कान तेरी संजीवन है,
कितने रिश्तों का यह जीवन है..

कभी खज़ाना ना खाली हो,
ना कभी इसकी कंगाली हो..

प्रेम की समृद्धि मिलेगी,
खूब लुटाना, खूब जुटाना..

राम सी श्रद्धा पाए तू,
श्रवण की सेवा भी लाना..

कृष्ण की चंचलता से,
सबके मन को खूब रिझाना..

आर्यभट्ट की सूक्ष्मता तो,
कलाम की सज्जनता पाना..

भर-भर  है ये आशीष तुझे,
सदा खुशियों से संपन्न रहे..

सर्वोत्तम सर्वप्रिय बनके,
ह्रदय में सबके बस जाना..

मन वाणी की मृदुता से,
"रेयांश" तू सार्थक बनाना!!!