कारे बदरा
कारे कारे, प्यारे बदरा, क्यों देर से आये रे...
रिमझिम करती बूंदों को थे क्यों हमसे छिपाये रे...
तकती राह कितनी अँखियाँ थीं,
चिंतित मन में बतियाँ थीं,
खग-विहग, ताल-तलैया,
सबकी बेचैन रतियाँ थीं||
जो आये अब तो ऐसे आये, मयूर मन ये बन जाये रे,
तेरी ठंडी ठंडी पवन के झोंके, मेरा रोम-रोम हर्षाये रे ||
कारे कारे, प्यारे बदरा, क्यों देर से आये रे...
रिमझिम करती बूंदों को थे क्यों हमसे छिपाये रे..
जो आये अब तो जाना मत तुम
दौलत अपनी कर दो न अर्पण,
टिको, रहो, ले लो तो कुछ दम,
तृप्त कर दो न सृष्टि का हर कण ||
तेरी नन्ही नन्ही फुहार की कलियाँ,
सौंधी सुगंध उड़ाए रे...
मन का पंछी चहकता उड़ता,
जब सब गुलशन बन जाये रे...
कारे कारे प्यारे बदरा, क्यों देर से आये रे||